मन से....

उधार को कहते हैं बुरी आदत….ऐसा क्यों….उधारिये मौटे तौर पर दो किस्म होते हैं….एक नकटे, दूसरे संजीदा…नकटे उठते-बैठते उधार की सोचते हैं….उन्हें लत लग जाती है….सारा काम उनका उधार से ही चलता है….लिहाजा नकटों की ये बुरी आदत कह सकते हैं….पर संजीदा, उनमें उधार लेने की आदत नहीं होती….बल्कि मजबूरी होती है…तभी तो उनमें उधार लौटाने की चिंता होती है….न लौटा पाने की पीड़ा भी होती है….पर लाचारी उनको बेहाल कर देती है….दिलो-दिमाग उलझकर रह जाते हैं…ऐसे उधारिये करें तो क्या करें….इनके साथ दूसरे क्या करें…..कोई तो बताओ यारो…..