देश के रक्षा-नाथ सियासत की स्थापित परंपरा निभा रहे हैं। उनका दल तो पूरी तरह से चार्ज है, पर वो सभी को साधने की लाइन पकड़े हुए हैं। तभी तो कश्मीर के दो दिग्गजों की रिहाई की प्रार्थना कर दी। करें भी क्यों न। सरकार में उनका डिमोशन जो हुआ है। पहले नंबर-दो पर थे, अब तीन पर ढकेल दिए गए हैं। इसकी पीड़ा तो मन को सालेगी ही।
लिहाजा रक्षा-नाथ कुछ बोल तो नहीं रहे, पर मन में अलग राह पकडऩे की सोच ली, लगती है। तभी तो नरमी का रुख अपनाकर अपने-पराए सभी से बनाए रखने में लगे हैं। इससे उनकी दो संभावनाओं में फिट बैठने की स्थिति बन सकेगी। यदि अंदरखाने प्रधानसेवक के खिलाफ माहौल बनता है, संघ भी उनसे असहज होता है, तो रक्षा-नाथ सर्वमान्य विकल्प बन सकते हैं। यदि ऐसा नहीं होता है और दो-ढाई साल बाद अगले राष्ट्रपति की बात चलती है, तो उनके नाम प र विचार हो सकता है। प्रधानसेवक उनके अबतक के प्रदर्शन में कोई खोट, असंतोष न देखकर सहमति जता सकते हैं।
गोया कि रक्षा-नाथ बड़ी सूझ-बूझ के साथ कदम बढ़ा रहे हैं और बोल निकाल रहे हैं। क्योंकि, ना जाने काऊ भेस में मिल जाएं ...।
सधी कदमताल