— हेमलता चतुर्वेदी —
एक तरफ कोरोना से हाहाकार, तो दूसरी तरफ समाज का मनोविज्ञान विकृत हो रहा है। इस महामारी को लेकर तमाम तरह के भय और भ्रांतियां सोशल मीडिया के माध्यम से फैल रही हैं, जिनमें से कुछ सच हैं तो कुछ कोरी अफवाहें, जिनके कारण माहौल और बिगड़ रहा है। खासकर भारत सरीखे देश में गरीबी, अशिक्षा और धर्मभीरुता के चलते इस महासंकट के बीच ऐसी बातें आग में घी का काम कर सकती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने मिथकों और भ्रांतियों को तोडऩे के लिए 14 बिंदुओं की एक एडवाइजरी जारी की है। इधर, भारत में जब वायरस फैलना शुरू हुआ, तो ऐसा प्रचार-प्रसार भी होने लगा कि जैसे-जैसे गर्मी आएगी, भारत में वायरस का असर कम होता जाएगा। कई डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने भी इसकी पुष्टि की। जबकि, डब्ल्यूएचओ ने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार करते हुए कहा कि कोरोना वायरस का तापमान से कोई संबंध नहीं है। बाहरी तापमान कितना भी कम या अधिक रहे, मनुष्य के शरीर का तापमान 36.5 सेंटीग्रेड से 37 सेंटीग्रेड तक ही होता है। इसलिए खूब ठंडे या गर्म पानी से नहाने का वायरस पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा।
चिंताजनक यह है कि बिना किसी पुख्ता जानकारी के सोशल मीडिया में आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक दवाओं और घरेलू नुस्खों का प्रचार हो रहा है। इनके अलावा हाथ को सुखाने वाले हैंड ड्रायर और हीटर या गीजर भी वायरस को मारने के विकल्प माने जा रहे हैं। लेकिन डब्ल्यूएचओ ऐसी सलाहों को सिरे से नकारने की बात कह रहा है। एक संदेश यह भी फैल रहा है कि लहसुन खाने से आप इस वायरस से बच सकते हैं। डब्लूएचओ का कहना है कि लहसुन में जरूर विषाणुरोधी गुण होते हैं, लेकिन अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है कि लहसुन खाने से कोरोना के विषाणु मर जाते हैं। इसी तरह कोई भी एंटीबायोटिक दवा इस वायरस को नहीं मार सकती।
वायरस की अवधि
कोरोना वायरस के बारे में दुनिया के कोशिका जीव विज्ञानी ( सेल बायोलॉजिस्ट) सबसे पुख्ता जानकारी दे रहे हैं। हाल ही में ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में सार्स-सीओवी-2 नामक वायरस पर एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है। इसी वायरस के कारण कोविड-19 नामक महामारी हुई है। यह वायरस सतह और हवा में कई घंटों से लेकर कई दिन तक रह सकता है। प्लास्टिक में 72 घंटे तक, स्टील में 48 घंटे, कार्ड बोर्ड में 24 घंटे और कॉपर में 4 घंटे तक जीवित रह सकता है। इतना ही नहीं यह 3 घंटे तक हवा में भी पाया जा सकता है, छींक की अति सूक्ष्म बूंदों के साथ। इसका मतलब यह है कि किसी संक्रमित व्यक्ति के आसपास रहने वाले को हवा के जरिए जल्दी संक्रमण पकड़ेगा बजाय सतह के।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
भारत में मई महीने के मध्य तक कोरोना वायरस से संक्रमित मामलों की संख्या एक लाख से लेकर 13 लाख तक हो सकती है। शोधार्थियों की टीम ने ‘सीओवी-आईएनडी-19’ नामक रिपोर्ट में कहा है कि महामारी के शुरुआती चरण में अमेरीका और इटली के मुकाबले भारत पॉजीटिव मामलों को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफल रहा है। लेकिन, इस आकलन में एक जरूरी चीज छूट गई है और वह है-इस वायरस से सचमुच में प्रभावित मामलों की संख्या। वैज्ञानिकों की इस टीम में अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय की देबश्री रॉय भी शामिल हैं।
बेतुके खौफ
- हापुड़ जिला (यूपी) पिलखुवा कोतवाली क्षेत्र निवासी सुनील सैलून का काम करता था। वो कुछ दिनों से बीमार चल रहा था। उसने कोरोना वायरस के डर से खुद को घर के अंदर ही बंद कर दिया। परिवार के किसी सदस्य से मिलना छोड़ दिया। घरवालों ने भी स्वास्थ्य विभाग को सूचना नहीं दी। फिर 22 मार्च सुबह युवक ने धारदार वस्तु से अपन गले और हाथ की नसें काटकर आत्महत्या कर ली। उसने सुसाइड नोट में लिखा कि वो कोरोना के डर से आत्महत्या कर रहा है। भाइयों से कहा कि मेरे बच्चों और मेरी मां का ख्याल रखना।
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 25 मार्च की शाम टीवी पर कहा कि दिल्ली के कुछ मकान मालिक ड्यूटी से घर लौटने वाले डॉक्टरों व नर्सों को निकालने की धमकी दे रहे हैं, क्योंकि वे कोरोना मरीजों का इलाज करते हैं। केजरीवाल ने ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी।
- कोरोना के भय से बागपत यूपी में डेढ़ महीने से मकान निर्माण करवा रहे व्यक्ति ने 24 मार्च को तीन मजदूरों को निकाल दिया। वे गरीब मजदूर पैदल ही अपने घर मुरादाबाद के लिए निकल पड़े।
- सरकारी बैंकों के कैशियर भी काफी भयभीत रहने लगे हैं, क्योंकि बैंक में उन्हें अलग-अलग हाथों और जगहों से आए नोटों को गिनना होता है।
- झारखंड के गिरिडीह के सदर अस्पताल में इलाजरत एक युवक की मौत हो गई। उसे कमजोरी व अन्य परेशानी थी। उसका शव रात से लेकर सुबह काफी देर तक अस्पताल में प?ा रहा, लेकिन कोरोना के भय के कारण अस्पताल स्टाफ ने शव नहीं उठाया। इस कारण परिजन बगैर पोस्टमार्टम कराए ही शव को अंतिम संस्कार के लिए ले गए।
- कई राज्यों में गांव वाले निश्चिंत हैं। उनका मानना कि यह एक शहरी बीमारी है, जो विदेशों से आई है और शहरों में अधिक फैल रही है। गांवों में इसकी आशंका कम ही है।